
भारतीय जनता पार्टी की सांगठनिक गतिविधियों में पर्दे के पीछे रहकर हर पुर्जे को दुरुस्त रखने की अहम जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिपाही अर्थात् संगठन महामंत्री के कंधे पर होती है.
भाजपा की सांगठनिक संरचना में संगठन महामंत्री सूत्रधार की भूमिका में होते हैं. काडर को सहेज़कर भाजपा के वोट बैंक को जीत में तब्दील करने में संगठन महामंत्री महती भूमिका निभाते हैं.
विगत् बिहार विधानसभा चुनाव का दौर याद कीजिये.
तमाम एक्जिट पोल जहां नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की विदाई के सुर छेड़ रहे थे, वहीं बिहार को 4 सेक्टर में बांट कर चुनावी सरगर्मी के नेपथ्य से भाजपा के 4 संगठन मंत्री राजग सरकार की पुनर्वापसी की सांगठनिक पटकथा लिखने में लगे थे.
जी हाँ, बिहार के संगठन महामंत्री एन. नागेन्द्र नाथ के दो बार कोरोना पाजिटिव हो जाने के कारण संघ ने भवानी सिंह, धर्मपाल सिंह, पवन शर्मा और रत्नाकर नामक अपने 4 संगठन मंत्रियों को बिहार चुनाव के समीकरण साधने हेतु मैदान में उतारा था.
उत्तर प्रदेश के ब्रज, कानपुर और बुदेलखंड के संगठन मंत्री भवानी सिंह ने मिथिलांचल के दरभंगा,कोशी और पूर्णिया जोन की सांगठनिक रणनीति साधकर 67 में से 45 सीटें एनडीए के खाते में डाल दिये, वहीं सूबे झारखंड के संगठन महामंत्री धर्म पाल सिंह ने मगध क्षेत्र के 19 में से 12 विधानसभा सीटों का विजयी समीकरण साध दिया था.
शाहाबाद क्षेत्र को संभाल रहे वाराणसी व गोरखपुर के संगठन मंत्री रत्नाकर को उतनी सफलता तो नहीं मिली किन्तु भाजपा से बागी होकर लोजपा के बंगले में पहुंचे झारखंड के पूर्व संगठन महामंत्री राजेन्द्र सिंह के विधायक बनने के मंसूबे पर उन्होंने पानी फेर ही दिया.
उत्तर बिहार की कमान संभालने पहुंचे दिल्ली के पवन शर्मा जो फिलहाल बिहार भाजपा के सह संगठन मंत्री भी हैं ने उत्तर बिहार की 45 में से 33 सीटों को एनडीए की झोली में समेट डाला.
कुल मिलाकर भाजपा के इन 4 संगठन मंत्रियों ने अपनी तरकीब और सांगठनिक कौशल से एनडीए को सहयोगी दलों समेत सत्तासीन करा ही दिया.
भाजपा संगठन मंत्रियों के सांगठनिक महत्व और उनकी उपलब्धि से जुड़े उपरोक्त दृष्टांत का ख्याल मुझे विगत् दिनों एक पूर्व संघ प्रचारक से हुई परिचर्चा के बाद आया.

सूबे झारखंड के मधुपुर उपचुनाव में भाजपा की स्थिति टटोलने पर उनका जवाब चौंकाने वाला था. उनकी बातों से मुझे लगा कि भाजपा के सांगठनिक अंदरखाने में कुछ उबाल तो है.
मुझसे चर्चा के दौरान ही उनके पास एक फोन आया. जी… जी भाईसाहब, मधुपुर पहुँच गये. अच्छा…. नहीं भाई साहब , मेरे पास जो ग्राउंड रिपोर्ट है उसके मुताबिक तो मधुपुर में भाजपा की हार तय है.
मैं चौंककर, गौर से ,पूर्व संघ प्रचारक का दूरभाष वार्तालाप सुन रहा था. जातिगत आंकड़े और आयातित उम्मीदवार की वजह से काडर मत बिखराव आदि का ब्यौरा देकर पूर्व प्रचारक ने फोन रख दिया.
भाईसाहब संबोधन भाजपा में बड़ा महत्व रखता है. आप कभी भाजपा कार्यालय जायेंगे तो चरण- पादुका उतार कर जिस कक्ष में प्रवेश करेंगे वहां जी भाईसाहब…हां भाईसाहब, हो जायेगा भाईसाहब आदि शब्द आपके कानों से जरूर टकरायेंगे.
मुझे जिज्ञासा हुई की पूछ लूं किनसे बात हो रही थी किन्तु मन मसोस कर इतना ही पुछा – क्या मधुपुर विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा की हार तय है?
पूर्व प्रचारक बोले- मधुपुर जीतना फिलहाल तो नामुमकिन दिख रहा है. समर्पित काडर को समेटने में पसीने छूट जायेंगे. संगठन महामंत्री के लिये तो धर्म स़़ंकट है ना जनाब. अपने समर्पित काडर को ठीक चुनाव के पहले भाजपा में आये गंगा नारायण सिंह के पक्ष में लामबंद करना उनके लिये भी दुष्कर होगा. दुमका- बेरमो के बाद मधुपुर उपचुनाव में भी पराजित हो गये तो संगठन महामंत्री के कौशल पर प्रश्न तो उठेंगे ही.
जातिगत व सांप्रदायिक गुणा-भाग बताते- बताते पूर्व प्रचारक ने भविष्यवाणी भी कर डाली की मधुपुर के समीकरण यदि नहीं साध पाये तो धर्म पाल सिंह की झारखंड भाजपा महामंत्री पद से विदाई तय है.
उपरोक्त के बीच, पूर्व भाजपा मंत्री व विधायक राज पालिवार की नाराजगी, क्षेत्र के सांसद निशीकांत दूबे के पालिवार विरोधी तेवर और सहयोगी आजसू के असमंजस के बीच संघ के पूर्व प्रचारक का खुलासा मुझे तो मधुपुर के चुनावी जंग को रोचक बनाता जरूर दिख रहा है.
फिलहाल मधुपुर में भाजपा के संगठन महामंत्री धर्म पाल सिंह, विधायक दल नेता बाबूलाल मरांडी, प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश समेत नव आयातित भाजपा विधायकों की फौज डटी है. देखना दिलचस्प होगा कि आजसू से भाजपा में आये गंगा नारायण सिंह हेमंत सोरेन सरकार को दुमका – बेरमो के बाद हो रहे तीसरे उपचुनाव में पटखनी दे पाते हैं या नहीं.
खैर, पतरो और गंगा की सहायक नदी अजय के बीच बसे मधुपुर विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा के गंगा नारायण सिंह जीतते हैं या हेमंत सोरेन सरकार के मंत्री हफीज़ुल अंसारी यह तो 2 मई को ही पता चलेगा, किन्तु इतना तय दिखाई दे रहा है कि मधुपुर उपचुनाव परिणाम झारखंड भाजपा में सांगठनिक उथल-पुथल का कारक जरूर बनेगा.
(कौशलेन्द्र कौशल जी झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं)