उज्ज्वल दुनिया, रांची (अमरनाथ पाठक)। हजारीबाग भारत मां के वीर पुत्रों की धरती रही है। इतिहास इसका गवाह है। इस धरती पर एक से बढ़कर एक महापुरुष का जन्म हुआ, जिनका जीवन आजादी की लड़ाई में समर्पित रहा।
ऐसे ही एक व्यक्ति का नाम है बाबू रामनारायण सिंह, जिनकी जिंदगी का 10 वर्षों का काल अंग्रेजों के बनाए जेल में कटा।
यह जानकारी देते हुए उनके पौत्र सह विनोबाभावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के जनसंपर्क अधिकारी सह राजनीति विभाग में प्रोफेसर डॉ प्रमोद कुमार ने बताया कि आजादी के संघर्ष में पूरे झारखंड-बिहार में सबसे अधिक जेल की सजा काटने वाले व्यक्ति बाबू रामनारायण सिंह ही थे।
रामनारायण बाबू का जन्म 19 दिसंबर 1885 को वर्तमान चतरा जिले के हंटरगंज स्थित तेतरिया गांव में हुआ था।
गरीब परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनकी पढ़ाई-लिखाई चतरा के जोरी, जिला स्कूल हजारीबाग और संत जेवियर्स कॉलेज कोलकाता और रिपन कॉलेज कोलकाता से हुई थी।
पटना से कानून की डिग्री 1916 में प्राप्त की और वहीं से वकालत शुरू की।
अंग्रेजी हुकूमत के अंतर्गत असिस्टेंट सेटलमेंट ऑफिसर पद पर नियुक्त हुए।
लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर नौकरी से त्यागपत्र देकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
असहयोग आंदोलन में शामिल होने की उन्हें सजा मिली। वर्ष 1920-21, 1922-24, 1930-31, 31-32, 32-34, 1940, 1942-44 में जेल की सजा काटी।
भागलपुर और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में लंबे समय तक बंद रहे।
जेल में ही डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ श्रीकृष्ण सिंह, डॉ हरिकृष्ण महताब, डॉ रामसुभग सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का सानिध्य मिला।
बाबू रामनारायण सिंह 1927 से 1947 तक लगातार केंद्रीय विधान परिषद और केंद्रीय विधानसभा के सदस्य रहे।
पंडित मोतीलाल नेहरू, विट्ठल भाई पटेल, पं. मदन मोहन मालवीय समेत कई राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का साथ केंद्रीय विधानसभा में मिला।
डॉ सुशीला मिश्रा की पुस्तक ‘फ्रीडम मूवमेंट इन छोटानागपुर’ और ‘डॉ केके दत्त की पुस्तक फ्रीडम मूवमेंट इन बिहार’ में इसकी विस्तार से चर्चा है।
वर्ष 1946 में वे संविधान सभा के सदस्य बने। संविधान सभा में उन्होंने सेवक मंडल के गठन का सुझाव दिया।
संविधान सभा की वाद-विवाद पंजी की पृष्ठ-639, 640 और 641 में इसका उल्लेख है।
उन्होंने अधिकतम पंचायती राज की वकालत की थी।
बाबू रामनारायण सिंह अंतरिम संसद के सदस्य थे।
1952 में जब प्रथम आम चुनाव हुआ था, तब हजारीबाग पश्चिमी लोकसभा क्षेत्र से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के ज्ञानी राम को उन्होंने 18 हजार मतोें से पराजित किया था।
आजीवन कांग्रेसी रहे रामनारायण बाबू ने बापू के आह्वान पर कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था।
1956 में उन्होंने ‘स्वराज्य लुट गया’ नामक एक पुस्तक लिखी थी, जिसकी सराहना लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने की थी।
उन्होंने इस पुस्तक को राजनीति की आचार संहिता कहा था।
रामनारायण बाबू का निधन 25 जून 1964 को चतरा सदर अस्पताल में हुआ था।
चतरा कॉलेज की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
उसी कॉलेज के काम से रांची जाने के क्रम में जीप दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
झारखंड सरकार ने आठवीं कक्षा के हिन्दी पाठ्यक्रम में उनकी जीवनी को शामिल कर सच्ची श्रद्धांजलि देने का प्रयास किया है।