पिछले हफ्ते, भारत-शासित कश्मीर के बर्फीले पर्यटन स्थल गुलमर्ग में आयोजित एक फैशन शो विवादों में घिर गया। प्रसिद्ध फैशन ब्रांड शिवन और नरेश द्वारा आयोजित इस शो में उनके स्कीवियर कलेक्शन को प्रदर्शित किया गया था।
हालांकि, यह शो स्थानीय लोगों, धार्मिक नेताओं और राजनेताओं की तीखी आलोचना का शिकार हो गया, जब Elle India और Lifestyle Asia द्वारा साझा किए गए वीडियो में कुछ मॉडलों को अंडरवियर या बिकनी पहने देखा गया। इसके अलावा, शो के बाद आयोजित एक पार्टी का वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें लोग खुले में शराब पीते दिखे।
स्थानीय समुदाय की प्रतिक्रिया
यह आयोजन रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान हुआ, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं। कई स्थानीय नेताओं और मौलवियों ने इस शो को “अश्लील” और “संस्कृति के खिलाफ” करार दिया। कुछ ने इसे “सॉफ्ट पोर्न” तक कह डाला।
हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह गुस्सा सिर्फ धार्मिक कारणों से नहीं, बल्कि बाहरी तत्वों द्वारा स्थानीय संस्कृति पर थोपी जा रही चीजों के खिलाफ भी था। कश्मीर, जो दशकों से हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता झेल रहा है, वहां के लोग अपनी पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए बेहद संवेदनशील हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
यह मुद्दा सोशल मीडिया से निकलकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा तक पहुँच गया। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने इस शो के लिए अनुमति देकर स्थानीय भावनाओं की अनदेखी की। हालाँकि, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने इस आयोजन से खुद को अलग करते हुए कहा कि यह निजी कंपनियों द्वारा आयोजित किया गया था और सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने स्थानीय प्रशासन से जांच रिपोर्ट माँगी और कहा कि यदि कोई कानून टूटा है तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कश्मीर की संस्कृति और विरोध का कारण
कश्मीर को सूफीवाद और संतों की भूमि माना जाता है, जहाँ की पारंपरिक पोशाक फेरन (Pheran) एक लंबा, ढीला वस्त्र होता है, जिसे पुरुष और महिलाएँ दोनों पहनते हैं। यहाँ फैशन शो या अन्य आधुनिक आयोजनों को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है जब बाहरी आयोजनों को लेकर कश्मीर में विवाद हुआ हो। 2013 में, प्रसिद्ध संगीतकार ज़ुबिन मेहता के संगीत कार्यक्रम का भी स्थानीय अलगाववादियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था।
क्या यह सिर्फ विरोध है या अवसर भी?
कई फैशन विशेषज्ञों का मानना है कि गुलमर्ग जैसे सुंदर स्थानों पर फैशन शो होना कोई नई बात नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलेक्जेंडर मैकक्वीन और कार्ल लेगरफेल्ड जैसे डिज़ाइनर भी अनोखे स्थानों पर अपने शो आयोजित कर चुके हैं।
कुछ विशेषज्ञ यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या यही विरोध तब भी होता अगर यह शो किसी अन्य भारतीय शहर में रमज़ान के दौरान आयोजित किया जाता? क्या यह विरोध सिर्फ कपड़ों की वजह से है या इसके पीछे राजनीति भी है?
हालाँकि, एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कश्मीर दुनिया की बेहतरीन ऊनी वस्त्रों और पश्मीना शॉल का केंद्र है। तो क्या एक फैशन शो, जो इन स्थानीय उत्पादों को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत कर सकता है, को सिर्फ इस कारण नकार देना चाहिए कि यह बाहरी लोगों द्वारा आयोजित किया गया था?
निष्कर्ष
कश्मीर में होने वाले किसी भी आयोजन को केवल कला या फैशन के नजरिए से नहीं देखा जा सकता। यहाँ की राजनीतिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता हर चीज़ को एक अलग अर्थ देती है। इस घटना ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बाहरी आयोजनों को यहाँ बढ़ावा देना सांस्कृतिक विकास है या स्थानीय पहचान पर खतरा?