देहरादून: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत के बाद सुरक्षा बलों की वर्दियों की आसान उपलब्धता एक बार फिर से चर्चा में आ गई है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावर सेना की वर्दी पहने हुए थे, जिससे आम नागरिक हमलावरों की पहचान नहीं कर सके।
यह पहली बार नहीं है जब आतंकी सुरक्षा बलों की वर्दी पहनकर हमले कर रहे हों। वर्दी पहनने से हमलावरों को आम नागरिकों को भ्रमित करने में आसानी होती है। हालांकि, इस संबंध में पहले भी दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं कि किसे वर्दी पहनने और बेचने की अनुमति है, लेकिन इनके पालन पर सवाल उठने लगे हैं।
ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून में एक स्टिंग ऑपरेशन किया, जहां सैन्य वर्दियां खुले बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। देहरादून में प्रतिष्ठित इंडियन मिलिट्री अकादमी (IMA) है और यहां बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं।
डाकरा मार्केट, पलटन बाजार, भानियावाला और मोती बाजार जैसे क्षेत्रों में सैन्य वर्दी, खुकरी, जूते, कैप, नेम प्लेट्स आदि आसानी से बेचे जा रहे हैं। दुकानदारों का कहना है कि वे आमतौर पर उन्हीं ग्राहकों को सामान बेचते हैं जिन्हें वे पहचानते हैं, लेकिन बिक्री का कोई रेकॉर्ड नहीं रखा जाता।
पुलिस अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि केवल सेवा में कार्यरत जवानों को ही वर्दी पहनने की अनुमति है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) अजय सिंह ने कहा, “जो भी पुलिस या सेना की वर्दी बेच रहा है, उसे केवल सैन्य या पुलिसकर्मियों को ही वर्दी देनी चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई की जाएगी।”
गढ़वाल रेंज के पुलिस महानिरीक्षक राजीव स्वरूप ने कहा कि दुकानदारों को बिक्री का रेकॉर्ड रखना अनिवार्य है और इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सेना की उत्तरी कमान के प्रवक्ता ने भी बिना उचित रिकॉर्ड के वर्दी बेचने को अवैध बताया है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 168, जो आम नागरिकों द्वारा सैन्य वर्दी पहनने से संबंधित है, बहुत ही ढीली है।
हालांकि, पुलिस ने अब वर्दियों की अवैध बिक्री को लेकर दुकानों की जांच शुरू कर दी है और सभी पुलिस थानों को अपने क्षेत्र में ऐसी दुकानों की पहचान करने और कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।