हुगली (चंपदानी):
कल्पना कीजिए कि एक छात्रा कक्षा के दौरान शिक्षक से शौचालय जाने की अनुमति मांगती है। सामान्य सी बात लगती है, है ना? लेकिन इस स्कूल में, छात्रा शौचालय नहीं जाती, बल्कि स्कूल परिसर से बाहर निकलकर पास के बदबूदार नाले के पास जाती है।
यह कोई अपवाद नहीं, बल्कि PBM रोड हिंदी प्राथमिक विद्यालय की कठोर सच्चाई है। हुगली जिले के चंपदानी में स्थित यह सरकारी मान्यता प्राप्त हिंदी माध्यम स्कूल पिछले आठ दशकों से जूट मिलों से घिरे मजदूरों के इलाके में शिक्षा प्रदान कर रहा है।
राष्ट्र के निर्माण की गूंज के बीच टूटी छत और सुविधाओं की कमी
1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय स्थापित इस स्कूल के 120 छात्रों और 7 शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी समस्या कोई पाठ्यक्रम नहीं, बल्कि मूलभूत सुविधाओं की कमी है। स्कूल किराए की इमारत में चलता है, जिससे सरकारी अनुदान मिलने में बाधा उत्पन्न होती है।
स्कूल की छत ठोस कंक्रीट की नहीं, बल्कि टूटी-फूटी मिट्टी की टाइलों से बनी है। बारिश हो, ठंडी हवाएँ हों, या चिलचिलाती धूप—मौसम बिना किसी रुकावट के सीधे कक्षा में दाखिल हो जाता है।
“तीन में से एक कक्षा के ऊपर कोई छत नहीं है, टूटी हुई भी नहीं। हम प्लास्टिक की चादरें लगाकर जैसे-तैसे काम चलाते हैं, लेकिन बारिश के दिनों में पढ़ाई करना लगभग असंभव हो जाता है,” एक शिक्षक ने कहा।
प्रधानाध्यापक की व्यथा:
प्रधानाध्यापक पंकज महतो ने कहा कि वे स्कूल के नवीनीकरण के लिए वर्षों से अधिकारियों के दरवाजे खटखटा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
“यह स्कूल स्वतंत्रता से पहले स्थापित हुआ था। हमने बार-बार शिक्षा विभाग और नगर पालिका से अनुरोध किया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। हमने यह तक कहा कि यदि सरकार चाहे तो इसे किसी और उचित जगह स्थानांतरित कर सकती है। फिर भी, कुछ नहीं हुआ,” महतो ने निराशा जताई।
स्थानीय प्रशासन का जवाब:
स्कूल, चंपदानी नगरपालिका के वार्ड नंबर 7 में आता है और दलहौजी जूट मिल्स के पीछे स्थित है। स्थानीय कांग्रेस पार्षद दरगा राजभर ने कहा, “मैंने कई बार इस स्कूल के लिए आधारभूत ढांचे में सुधार करवाने का प्रयास किया। मिड-डे मील नियमित रूप से उपलब्ध है, लेकिन स्कूल को पूरी तरह से पुनर्निर्मित करने की जरूरत है। अगर मौजूदा भवन मालिक अनुमति दें, तो प्रशासन और एनजीओ की मदद से नया भवन बनाया जा सकता है। लेकिन मालिक सहमत नहीं हो रहे हैं।”
चंपदानी नगरपालिका के चेयरमैन सुरेश मिश्रा भी यही बात दोहराते हैं, “हम कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि यह निजी संपत्ति पर बना हुआ है। अगर शिक्षा विभाग सहमत होता है, तो हम या तो मालिकों से बातचीत कर सकते हैं या इसे किसी अन्य सरकारी स्कूल में विलय करने का सुझाव दे सकते हैं।”
छात्रों और शिक्षकों की दुर्दशा:
स्थानीय निवासी उषा नायक और द्रौपदी देवी कहती हैं, “स्कूल में पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं है, न ही शौचालय। पास के घरों के मालिक कभी-कभी बच्चों को अपने शौचालय इस्तेमाल करने देते हैं। स्कूल में कभी एक अस्थायी शौचालय था, लेकिन अब वह उपयोग लायक नहीं है। हमने कई बार अलग-अलग राजनीतिक दलों से शिकायत की, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।”
सरकारी नियमों में फंसा समाधान:
हुगली जिला प्राथमिक शिक्षा परिषद के एक अधिकारी ने कहा, “मुख्य समस्या यह है कि स्कूल निजी संपत्ति पर चलता है। सरकार से अनुदान मिलने के बावजूद, इसे निजी जमीन पर खर्च नहीं किया जा सकता। जिले में ऐसे कई स्कूल हैं। हम चाहते हैं कि यह स्कूल सुचारू रूप से चले, और यदि स्थानांतरण का निर्णय लिया जाता है, तो हम पूरी सहायता करेंगे।”
इस बीच, मासूम बच्चे आज भी बिना शौचालय और बिना छत वाले स्कूल में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। क्या कोई समाधान निकलेगा, या यह स्कूल भी सरकारी फाइलों में दफन होकर रह जाएगा?