
121 लोगों के खिलाफ हो चुका है मामला दर्ज,15 हो चुके हैं गिरफ्तार
सिमरिया/गीतांजलि:-चतरा जिले में साग सब्जियों से ज्यादा अब अफीम की खेती होने लगी है।पिछले दो माह में पुलिस और वन विभाग द्वारा रौंदे गए अफीम की खेती इस बात की पुष्टि करने लगे हैं।बीते दो माह के दौरान चतरा जिले के उग्रवाद प्रभावित कुंदा, प्रतापपुर, हंटरगंज, वशिष्ठनगर, चतरा सदर,लावालौंग, राजपुर और गिद्धौर वन क्षेत्र में पुलिस और वन विभाग द्वारा चलाए गए संयुक्त अभियान के दौरान 727 एकड़ में उगाए गए अफीम के पौधे रौंदे गए। मगर अभी भी लगभग सात आठ सौ एकड़ में अफीम के पौधे लहलहा रहे हैं।
अफीम की खेती करने के आरोप में पिछले साठ दिनों में 121 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जा चुका है। यानि हर दिन दो लोग अफीम की खेती करने के आरोप में पुलिस रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं। 15 लोगों को अब तक सलाखों के पीछे भी डाल दिया गया है। पुलिस और वन विभाग का भी मानना है कि अभी भी दर्जनों एकड़ में लगे अफीम के फसल को रौंदने के लिए उन्हें कसरत करना बाकी है।चतरा जिले के पुलिस कप्तान ऋषभ झा का कहना है कि पुलिस और वन विभाग तक तक चैन की सांस नहीं लेगा जब तक अफीम उगाने वालों को सलाखों के पीछे नहीं डाल देगा।
किसानों को दूसरे राज्य के तस्कर करते हैं खेती के लिए फाइनेंस
यह सच है कि भोले भाले किसानों को बाहर के तस्कर अफीम उगाने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं और खेती के लिए फाइनेंस भी करते हैं।अफीम के फलों में जब चीरा लगाने का समय आता है तो वे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान सहित अन्य राज्यों से आकर चतरा जिले के गांवों में डेरा डाल देते हैं।किसानों को तस्कर गीला अफीम के एवज में 30 से 40 हजार प्रति किलो के दर से रकम अदा कर दूसरे प्रदेशों में दस गुना ज्यादा दाम पर बेच देते हैं।
जिसकी जिम्मेवारी है सूचना देना,वह नहीं खोलता जुबान
यह सच है कि पुलिस और वन विभाग के कर्मियों को अफीम की खेती की जानकारी होती है।पर वे इस सूचना को अपने वरीय अधिकारियों से आदान प्रदान नहीं करते।माना जाता है कि थाना के चौकीदार और वन प्रहरी अपने अपने क्षेत्र की हर बात से वाकिफ रहते हैं।मगर अफीम की खेती करने वाले लोगों की ओर से मिलने वाला नजराना इनका मुह बंद रखने पर मजबूर कर देता है।
रिपोर्ट:-गीतांजलि।फोटो:-अफीम के पौधे और फल।