वेदों में भी उल्लेख है कि भय- आहार – निद्रा – मैथ… से पृथ्वी का कोई भी जीव मुक्त नहीं है. ईश्वर ने मानव योनि के जीव को विवेक का विशेष वरदान दिया है ताकि एतद् संबंधी वर्जनाओं की लाज बची रहे. कोरोना आपदा झंझावात से लड़ते – उबरते विकास के पहिये को सरपट विकसित झारखंड की ओर ले जाती सरकार का सरोकार ‘सियासी छींटाकशी तो कत्तई नहीं हो सकता है.

वैश्विक स्तर पर पन्ने पलटें अथवा भारतीय राजनीति के. सियासी महत्वाकांक्षा पूर्ति की सीढ़ी जुगाड़ करते- करते विवेकहीनता की काली छाया आ ही जाती है. ‘जब नाश मनुज पर छाता है तो विवेक पहले मर जाता है’ वाली पंक्तियों का उल्लेख करूँगा तो सुधि- पाठक मुझे बकैत की श्रेणी में भी डाल सकते हैं. किन्तु मेरी बेबाक जिज्ञासा मात्र इतनी है कि क्या राजनीतिक सुचिता को बरकरार रखते हुये लोकतंत्र के वृक्ष को मजबूती नहीं दी जा सकती?
सरकार किसी की भी हो. सरकार तो सरकार होती है. सरकार का इकबाल होता है और जनता उसी की इज्जत करती है. सरकार का सरोकार जनता और जनोन्मुखी क्रियाकलापों से होता है.
बावजूद इसके एक पूर्व मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार पर अरगोड़ा थाने में यौन-शोषण का मामला दर्ज किये जाने और एक वकील साहब की संदिग्ध निगरानी की खबर सोशल मीडिया पर वायरल होते ही मुझे 30 सितम्बर, 2020 को लिखे अपने बेबाक :
‘ हनीट्रेप की सियासी क्रोनोलाजी’ की याद आने लगी.
साथ ही निम्न पंक्तियाँ भी जेहन में कौंधने लगी-
वनवास में विरह का दर्द देवी उर्मिला से पूछो,
माँ सीता से पूछोगे तो धर्म ही बताएगी
मोहब्बत का अर्थ राधा से पूछो,
रुक्मिणी से पूछोगे तो अधिकार ही बताएगी
सेवा का मतलब श्रवण कुमार से पूछो,
हनुमान जी से पूछोगे तो आनंद ही बताएँगे
और ज़हर का स्वाद शिव से पूछो,
मीरा से पूछोगे तो अमृत ही बताएगी..
सच में उपरोक्त पंक्तियों का निहितार्थ गूढ़ है. वर्तमान सियासी गतिविधियों पर गौर करें तो घात-प्रतिघात में सबकी सोच अलहदा ही है. केस – मुकदमा और सियासी घेराबंदी कोई अजूबा नहीं लेकिन इतना तय मान लीजिये की इसका उद्देश्य यदि जनहित न हो तो घातक है.

नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी की प्रत्याशा में बैठे एक पूर्व मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार (जो कुछ दिनों पूर्व तक सूबे के वर्तमान मुखिया पर ट्विटर लांछन अभियान में जुटे थे) के उपर यौन शोषण का मुकदमा दर्ज हो जाने की खबर पर गौर ही कर रहा था कि आज ही एक चर्चित वकील साहब ने भी शंकाजनित पोस्ट डाल चौंका दिया. साथ ही उनके घर पर संदिग्ध महिला की उपस्थिति और गतिविधियों का वीडियो भी लाईव.
दिल्ली से चला पेगासस का भूत झारखंड में प्रतिपक्ष के नेताओं को फोन टेपिंग और सर्विलांस से हलकान भी किये हुये है.
तमाम घटनाक्रम को एक सिरे में पीरोने के बाद अब सूबे की सियासत की राह किस ओर अग्रसर होगी, ये कह पाना फिलहाल मुझे मुमकिन नहीं लगता, किन्तु इतना तय जान पड़ता है कि शीशे के महलों में विराजमान पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं की “हनीट्रेप’ वाली सियासत सूबे के विकास पहिये को कीचड़ में जरूर फंसायेगी.
मेरी तो सियासी सूरमाओं को यही सलाह होगी कि विकृत राजनीति को विराम दें और झारखंड की जनता को विकास की सौगात देने के लिये निम्न पंक्तियों को चरितार्थ करें-
दिल से साबित करो कि जिंदा हो !!!
सांस लेना कोई सबूत नहीं…..