26/11 मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा की एनआईए हिरासत को अदालत ने 12 और दिनों के लिए बढ़ा दिया है। वही तहव्वुर राणा, जो पाकिस्तान के इशारे पर मुंबई में 166 निर्दोष लोगों की जान लेने की साजिश का हिस्सा था।
लेकिन आज भी, उसे एक आतंकवादी की तरह नहीं, एक विशेष विदेशी नागरिक की तरह पेश किया जा रहा है। कोर्ट में बार-बार पेशी, विशेष सुविधाएं, और उसके “अधिकारों” की चिंता — यह देखकर सवाल उठता है कि क्या भारत अब भी राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा आतंकियों के अधिकारों को महत्व दे रहा है?
यह वही भ्रष्ट व्यवस्था है, जो 2008 में कांग्रेस सरकार के अधीन मुंबई को आतंकियों के हवाले कर चुकी थी। सुरक्षा एजेंसियाँ विफल रहीं, नेताओं ने केवल खोखले बयान दिए, और आम जनता को बर्बादी झेलनी पड़ी। अब, जब तहव्वुर राणा जैसे अपराधी भारत में हैं, तो वही गलती दोहराई जा रही है।
आज की सरकार में भी, जो शिवसेना कभी मराठी अस्मिता की बात करती थी, वह अब दिल्ली की राजनीति में अपनी सुविधा देखकर चुप बैठी है। देशद्रोहियों के खिलाफ एक सख्त संदेश देने की बजाय, हम न्यायिक प्रक्रियाओं के नाम पर समय बर्बाद कर रहे हैं।
राणा जैसे आतंकियों के साथ किसी भी प्रकार की सहानुभूति या कानूनी ढील, 26/11 के शहीदों का अपमान है। ऐसे गद्दारों को अदालतों में घुमाने की नहीं, त्वरित और सख्त सजा देने की जरूरत है ताकि दुनिया को एक स्पष्ट संदेश मिले कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।
देश को आज ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो राष्ट्रद्रोहियों के साथ “मानवाधिकार” का खेल नहीं खेले, बल्कि कड़ी कार्रवाई कर यह साबित करे कि भारत आतंक के खिलाफ पूरी मजबूती से खड़ा है।