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हिमाचल की पहाड़ियों में राफेल ने शुरू किया अभ्यास

उज्ज्वल दुनिया  नई दिल्ली, 11 अगस्त (हि.स.)। फ्रांस से हाल ही में मिले राफेल फाइटर जेट्स ने भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में उड़ान भरने का अभ्यास करना शुरू कर दिया है। इससे भारतीय वायुसेना के पायलटों की भी पहाड़ी इलाकों में राफेल उड़ाने की ट्रेनिंग हो रही है। वायुसेना के पायलट राफेल के साथ यह अभ्यास रात के समय हिमाचल की पहाड़ियों में कर रहे हैं। करीब 1700 किलोमीटर के घेरे में अटैक करने की क्षमता रखने वाले राफेल अपने ​सर्कल में कहीं भी मार कर सकते हैं। इस सर्कल में पूर्वी लद्दाख, चीन के अवैध कब्ज़े वाला अक्साई चिन, तिब्बत, पाकिस्तान और पीओके है।  

 चीनी सेना के रडार की फ्रीक्वेंसी से बचाने के लिए राफेल को एलएसी से रखा जा रहा है दूर 

वायुसेना के सूत्रों का कहना है कि दरअसल चीन ने अपने कब्जे वाले अक्साई चिन में रडार लगा रखे हैं, जिनकी फ्रीक्वेंसी से दूर रखने के मकसद से राफेल फाइटर जेट्स को अभी एलएसी की बजाय हिमाचल के पहाड़ी इलाके में अभ्यास कराया जा रहा है। हालांकि ​राफेल में जैमर लगे हुए हैं जो दुश्मन के रडार को जाम करने की क्षमता रखते हैं। ​राफेल में एक टारगेट कॉर्डिनेटर डिवाइस लगा होता है जो राफेल को चील की नजर देता है। दुश्मन के इलाके में जाने से पहले ही टारगेट इसकी नजर में होते हैं। यही वजह है कि बॉर्डर क्रॉस करने से पहले ही पायलट टारगेट को हमले के लिए लॉक कर सकता है। ​

पहाड़ी इलाकों में लड़ाई के लिए खासतौर पर डिजाइन किया गया है  राफेल 

राफेल लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके में भी बेहद फायदेमंद है क्योंकि इसे पहाड़ में लड़ने के लिए डिजाइन किया गया है और तेजी से रास्ते बदल सकता है। पलक झपकते ही ऊंचाई तक पहुंच सकता है और इतनी ही तेजी से गोते भी लगा सकता है। ​राफेल के अटैक का दायरा करीब 1700 किलोमीटर के घेरे में होता है। भारतीय वायुसेना की ‘गोल्डन ऐरोज’ 17 स्क्वाड्रन अंबाला में ही है जहां से लद्दाख की दूरी करीब 430 किलोमीटर है लेकिन सुपरसॉनिक विमान के लिए यह बहुत कम दूरी है।

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