अमेरिका के शोधकर्ताओं की एक टीम ने दावा किया है कि सोशल मीडिया दुनिया भर में हिंसा और कट्टरता फैलाने का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। रिसर्च टीम का ये भी दावा है कि कभी-कभी सोशल मीडिया ऑपरेट करने वाली कंपनियां भी ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए, आम लोगों को उत्तेजित करने वाली सामग्री को वायरल करती हैं।
एंटी-डी-इंफॉर्मेशन के के-फाउंडर क्लेयर वार्डले ने 16 लोगों की एक्सपर्ट टीम के साथ अमेरिका के कैपिटल हिल्स में हुई हिंसा के कारणों की जांच की। उन्होने अपने रिसर्च पेपर में दावा किया है कि अमेरिका के कैपिटल हिल्स पर हुई हिंसा के पीछे सोशल मीडिया का ही हाथ था…सोशल मीडिया के कारण तरह-तरह की अफवाह फैली…सोशल मीडिया में यह बात भी कही गई कि अगर आज ट्रंप की हार होती है तो अमेरिका में रहने वाले गोरे लोगों की हार होगी…सोशल मीडिया में दावा किया गया कि ट्रंप को हराने के पीछे मुस्लिम और कम्युनिस्ट ताकतों का हाथ है। ट्रंप अगर हारते हैं तो अमेरिका की सत्ता हमेशा के लिए एशिया और मुस्लिम देशों के प्रवासियों के हाथों में चली जाएगी…
क्लेयर वार्डले ने बताया कि इसके बाद हमने पिछले साल (2020) दुनिया भर में फैली हिंसक घटनाओं के कारणों की तह में जाना शुरु किया । हमारे आश्चर्य का ठीकाना न रहा जब हमने पाया कि फेसबुक और ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया की कंपनियां भी ऐसी सामग्रियों को बढ़ावा दे रही थीं जो एक धर्म को दूसरे से लड़ाता है। शायद इससे इन कंपनियों का बिजनस बढ़ता होगा…
रिसर्च में दावा किया गया कि फेसबुक, विंगो, यू-ट्यूब, ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को काबू में न किया गया तो न सिर्फ पूरी दुनिया में हिंसा बढ़ेगी बल्कि ये प्लेटफॉर्म विश्वयुद्ध का कारण भी बन सकते हैं…