
निदेशक
दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल
फुलबारी जलपाईगुड़ी
ब्यूरो राजेश कुमार जैन से विशेष भेंटवार्ता
नौकरीपेशा वालों को सिर्फ भविष्य निधि(PF) ही नहीं बल्कि सरकार के द्वारा एक और चलाई जाने वाली योजना का नाम है, ESIC यानी (कर्मचारी राज्य बीमा योजना)।
भारत का कर्मचारी राज्य बीमा निगम एक बहु आयामी सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था है, जो कर्मचारियों एवं उनके आश्रितों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए अपनी योजना के अंतर्गत शामिल करता है। बीमा में रोजगार के पहले दिन से यह स्वीकार्य है कि बीमित व्यक्ति बीमारी के कारण शारीरिक कष्ट, अस्थायी या स्थायी अक्षमता आदि की स्थिति में स्वयं तथा अपने आश्रितो के लिए पूर्ण चिकित्सा देखभाल के अतिरिक्त नगद हितलाभ पाने के भी हकदार होंगे। बीमारी के कारण उपार्जन क्षमता में हानि के परिणाम स्वरूप, बीमित महिला के प्रसव के सम्बन्ध में,ऐसे बीमित व्यक्ति के आश्रित जन, जिसकी औद्योगिक दुर्घटना में अथवा रोज़गार जोख़िम या व्यवसायिक संकट के कारण मृत्यु हो गई हो, वह मासिक निवृति वेतन अर्थात आश्रितजन हितलाभ पाने के हकदार होंगे। ऐसी व्यापक सामाजिक सुरक्षा योजना जिसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्र में कर्मचारियों को बीमारी, प्रसूति, अपंगता तथा रोजगार चोट के कारण हुई मृत्यु की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना और बीमाकृत कर्मचारियों तथा उनके परिवार के सदस्य को चिकित्सा देखभाल की सुविधा प्रदान करना है। जिन लोगों की आय कम है और जो सरकारी या निजी क्षेत्र में काम करते हैं उसके लिए केंद्र सरकार ने यह योजना 1948 में प्रारंभ की थी। यह संस्था केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के तहत काम करती है सरकारी और निजी क्षेत्र के सीमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम भी चलाती है इसकी स्कीम के तहत पेंशन का लाभ भी लिया जा सकता है जिन संस्थाओं, फैक्ट्रियों, कंपनियों में 10 या अधिक कर्मचारी काम करते हैं वहां ही ईएसआईसी की योजना का फायदा मिलता है। ईएसआईसी हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी का संचालन ही करता है जहां मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती है इसी का फायदा उन कर्मचारियों को मिलता है जिनका मासिक वेतन 21000 से कम हो वहीं दिव्यांग लोगों के मामले में ₹25000 है। नियोक्ता और कर्मचारियों दोनों को अंशदान(premium) का भुगतान करना पड़ता है। मौजूदा समय में कर्मचारियों को अपने वेतन से 0.75% और नियोक्ता को 3.25% का भुगतान करना पड़ता है। जिन कर्मचारियों का औसत वेतन रोजाना ₹137 तक होता है उन्हें कोई योगदान नहीं करना होता है । ईएसआईसी में रजिस्ट्रेशन नियोक्ता की ओर से कराना अनिवार्य है इसके लिए कर्मचारियों को सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों के बारे में जानकारी देनी होती है इस योजना में नॉमिनी भी कर्मचारी को तय करना होता है। इस योजना में जिस कर्मचारी का बीमा होता है उसकी मृत्यु हो जाने पर आश्रितों को पेंशन मिलती है। पेंशन आश्रितों को आजीवन मिलती है इसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है पहला हिस्सा बीमित की पत्नी को दूसरा उसके बच्चों को और तीसरा माता-पिता को मिलता है। योजना का सबसे बड़ा फायदा है कर्मचारी और उसके परिवार को मेडिकल सुविधाएं दिया जाना जहां इलाज पूरी तरह मुप्त होता है। दवाइयों का पैसा भी नहीं लगता। अगर किसी की बीमारी गंभीर हो तो उसे प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाता है तो भी सारा खर्च ईएसआईसी का होता है। गंभीर बीमारी की वजह से कोई कर्मचारी जॉब नहीं कर सकता तो ऐसी स्थिति में ईएसआईसी द्वारा कर्मचारी के वेतन का 70% भुगतान किया जाता है अगर कर्मचारी किसी वजह से विकलांग हो जाता है तो उसे वेतन का 90% भुगतान किया जाता है अस्थाई तौर पर विकलांग हो जाने पर जीवन भर सैलरी का 90% भुगतान मिलता रहता है।ESIC ने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भी खोले हैं। ईएसआईसी सुविधाओं को लेने के लिए कर्मचारियों को कार्ड बनवाना पड़ता है ।कर्मचारी यह कार्ड या कंपनी के दूसरे दस्तावेज दिखाकर डिस्पेंसरी और अस्पताल में अपना और फैमिली मेंबर्स का इलाज करवा सकते हैं। अगर उनकी बीमारी गंभीर हुई तो ईएस आई स के
अस्पताल उन्हें दूसरे बड़े अस्पतालों में इलाज के लिए रेफर करते हैं। सरकार द्वारा कर्मचारियों के लिए चलाई जा रही योजना वाकई लाभकारी है। लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और बयां करती है।इस संदर्भ में जानकारी हासिल करने पर पता चला कि कर्मचारियों को सुविधा प्रदान करने के नाम पर लिए गए अंशदान (Premium) से सरकार के पास एकलाख करोड़ रुपए से अधिक का फंड तैयार हो गया है पर चिकित्सा सुविधाएं नदारद हैं। योजना की परिभाषा अनुसार सारे वायदे कोरे कागज की तरह हैं।छोटे और ग्रामीण शहरी क्षेत्रों में सरकारी वायदे के मुताबिक कोई चिकित्सा मुहैया नहीं कराई जाती है बल्कि बीमित कर्मचारी दर- दर की ठोकरें खाकर दम तोड़ देते है। इतना ही नहीं पेंशन लेने के लिए बाबूओं की चौखट पर दिन रात हाजिरी लगाने के महीने दिन बाद नंबर आता है।कुछ एक बड़े शहरों को छोड़ दें तो ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं का अभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उत्तरबंगाल के मालदा, बालूरघाट, दिनाजपुर,अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी क्षेत्रों में तो हाल बद से बदतर हैं।इन स्थानों में अस्थाई डिस्पेंसरी पर अस्थाई डाक्टर बैठाया गया है जहां मरीज के पहुंचने पर उसकी सही तरीके से जांच करने की बजाय काम चलाऊ अंग्रेजी दवाईयां देकर छोड़ दिया जाता है परिणाम स्वरूप एक समय आता है कि इलाज के अभाव में कर्मचारी परलोक सिधार जाता है। बड़े बड़े विज्ञापनों के बावजूद आयुष चिकित्सा की कोई व्यवस्था संपूर्ण उत्तर बंगाल में नहीं है।ईएसआईसी के अधिकारियों की संपूर्ण शक्ति और दायित्व मानो लोगों का नामांकन करने और फिर उनसे अंशदान वसूलने मात्र का है। पहले से ही सीमित वेतन पाने वाले गरीब लोगों का योजनाबद्ध तरीके से शोषण किया जा रहा है।
प्रश्न यक्ष यह है? कि सरकार अपने वायदों को निभाने में नाकाम होती है या मुकरती है तो क्या सरकार पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए? कर्मचारी और उसके आश्रितों की मृत्यु के दोषी सरकारी कर्मचारियों के लिए क्या सजा मुकर्रर नहीं की जानी चाहिए?अगर नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों का अंशदान समय से जमा नहीं किया गया है तो ऐसी स्थिति में ईएसआईसी नियम एवं शर्तों के अनुसार नियोक्ता के बैंक खाते को सील कर दिया जाता है। आखिर यह दोहरी नीति क्यों? अंगुली माल और महात्मा बुद्ध के बीच के संवाद को आपने पढ़ा होगा और सुना भी होगा।संवाद के वाक्यांश वर्तमान समय में चरितार्थ हो रहे हैं।
“मैं तो ठहर गया,भला तू कब ठहरेगा”।आज ईएसआईसी के संबंध में सरकार की भूमिका ऐसी ही है।