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साहिबगंज के मिर्जा चौकी से फरक्का तक करीब 91 किमी में फैली गंगा में डाॅल्फिन कैसे रहेंगे सुरक्षित ?

गंगा घाट पर मृत डॉल्फिन को देखते स्थानीय

बिहार के विक्रमशिला के तर्ज पर डाॅल्फिन अभ्यारण्य से ही डाॅल्फिन को संरक्षण


साहिबगंज/नीरज कुमार जैन
साहिबगंज। राष्ट्रीय जलीय जीव डाॅल्फिन की डेढ़ माह के दरम्यान दूसरी बार वन विभाग ने उधवा के पश्चिम प्राणपुर झारखंड बंगाल के सीमांत कामरटोला के समीप नाव घाट से मृत डाॅल्फिन सोमवार को बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा है।

पिछले 18 दिसंबर 2020 को राजमहल के कसवा गांव के पास गंगा तट से करीब 35 किलो की मृत डाॅल्फिन विभाग ने बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज डाॅल्फिन के मृत होने का कारण जानने के लिए अनुसंधान में जुटी थी। उक्त मामला का अभी विभाग पटाक्षेप भी नही कर पायी थी कि डेढ़ माह के दरम्याण विभाग ने पुनः एक मृत डाॅल्फिन बरामद किया है।


डाॅल्फिन के शिकार या मृत मिलने की घटना नई नहीं है। जुलाई 2016 महाराजपुर, जनवरी 2018 उधवा बंगमगंज और फरवरी 2018 में एक मछुआरे के जाल में डाॅल्फिन फंसने से मौत हो गई थी। वन विभाग और जिला प्रशासन ने एक बार एक झोलाछाप चिकित्सक पर प्राथमिकी भी कर चुकी है। विलुप्त प्रायः जीव डाॅल्फिन झारखंड में एकमात्र जिला साहिबगंज में बहने वाली गंगा में असुरक्षित होती प्रतीत हो रही है।

गंगा में इन दिनों जिस तरह से यंत्र चालित नाव से होने वाले शोर-शराबे व अन्य मानवीय गतिविधिया डाॅल्फिन के विलुप्त होने में अग्रणी भूमिका निभा रही है। वही सूत्रों की माने तो घुटनों के दर्द में डाॅल्फिन का तेल रामबाण है। भारत में 2012 में मेरी गंगा मेरी डाॅल्फिन नामक कार्यक्रम का संचालन हुआ लेकिन डाॅल्फिन को लेकर कोई सर्वे न होने से साहिबगंज की गंगा में डाॅल्फिन की संख्या अज्ञात है।

साहिबगंज के गंगा घाट में मृत पड़ी डॉल्फिन

बिहार के सुल्तानगंज से कहलगांव तक के करीब 60 किमी में विक्रमशीला डाॅल्फिन अभ्यारण्य के तर्ज पर साहिबगंज के मिर्जाचैकी से फरक्का करीब 91 किमी में फैली गंगा को डाॅल्फिन अभ्यारण्य घोषित कर संरक्षण की मांग लंंबे समय से की जा रही है।


डाॅल्फिन मीठे जल का जीव है । इसकी याददाशत अन्य जीवों से अधिक होती है । यह 5 से 15 वर्ष तक ये जीवित रह सकती है । श्रवण शक्ति मनुष्य से अधिक होती है । डाॅल्फिन स्तनधारी जीव की श्रेणी में आती है, एक आंख खोलकर सोना, दर्पण में स्वयं को पहचानना और दाॅत होते हुए भी भोजन निगलना इनकी प्रमुख खासियत है।


डाॅल्फिन वजन के अनुपात में बेची जाती है। 22 सौ से सात हजार तक में बेची जाती है। इसका खुलासा राधानगर के शिकारपुर (बंगाल) के पास मछुआरें के जाल में फंसी थी तब उक्त मछुआरें ने उक्त 20 किलों की डाॅल्फिन को 23 सौ में बेचा था। राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित होने के बाद भारतीय वन्य जीव संरक्षण के दायरें में रख इसके शिकार पर प्रतिबंध है। और शिकार करने वाले को कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान।


डीएफओं मनीष तिवारी ने बताया कि डाॅल्फिन की स्वाभाविक मौत है या कोई कारण इसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही खुलासा हो पायेगा। उन्होने बताया कि बरामद मृत डाॅल्फिन प्रथमदृष्टया 5-6 दिन पूरानी जान पड़ती है। शरीर में चोट के निशान भी प्रतीत हो रहे है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही आगे की कार्रवाई संभव है।

गंगा में डॉल्फिन की विलुप्तप्राय प्रजाति


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