सैय्यद शाहनवाज हुसैन 2014 में भागलपुर से लोकसभा चुनाव हार गए, 2019 में उन्हें टिकट तक नहीं दिया गया । इसके साथ ही राजनीतिक पंडितों ने कहना शुरू कर दिया कि शाहनवाज हुसैन मोदी-शाह युग के उपेक्षित नेताओं में से एक हैं ।
कश्मीर में मेहनत का मिला इनाम
शाहनवाज हुसैन ने धीरज नहीं खोया । जब भी मौका मिलता, वे टेलीविजन डिबेट में पार्टी का बचाव करते रहे । पार्टी ने उन्हें कश्मीर भेजा…कश्मीर में हाल ही में हुए चुनाव में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन के पीछे भी शाहनवाज हुसैन का जमीन पर की गई मेहनत का हाथ है । श्रीनगर से भाजपा के विजयी एजाज हुसैन बताते हैं- “शाहनवाज हुसैन (हम प्यार से उन्हें शाहनवाज भाई बुलाते हैं) वैसे इलाकों में बिना तामझाम चले जाते थे जहां हम कश्मीरी होते हुए भी जाने से डरते हैं । मना करने पर बोलते कि “वो लोग भी तो आप-हम जैसे इंसान ही हैं, बिना मतलब क्यों मार देंगे? ”
सुशील मोदी की जगह भरेंगे शाहनवाज हुसैन?
सुशील मोदी की बिहार की राजनीति से विदाई हो गई है । उन्हें राज्यसभा भेजा जा चुका है । सुशील मोदी द्वारा खाली की गई सीट से शाहनवाज हुसैन को MLC बनाकर पार्टी ने एक साथ कई संदेश दिए हैं । बिहार की मौजूदा राजनीति में कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जो जनता को सर्वमान्य हो। पार्टी भविष्य में बिहार में अकेले अपने दम पर सरकार बनाना चाहती है । इसके लिए उसे ऐसे चेहरे की तलाश है, जिसे सीएम उम्मीदवार बनाया जा सके । मौजूदा बिहार भाजपा में अपनी-अपनी जाति-बिरादरी के नेता तो हैं, लेकिन सीएम के रुप में सर्वमान्य चेहरा कोई नहीं ।
शाहनवाज हुसैन बिहार की राजनीति में कहां?
गुजरात में मोदी ने विजय रुपाणी को सीएम बनाया है जबकि वहां जैन समुदाय की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है । उसी तरह महाराष्ट्र में मराठा दलित और पाटिल के दबदबे वाली राजनीति में भाजपा ने देवेन्द्र फडनवीस जैसे ब्राह्मण चेहरे को सीएम बनाया । तो फिर बिहार भाजपा का मुख्यमंत्री का चेहरा एक “सैय्यद” मुसलमान क्यों नहीं हो सकता ?
क्या नया प्रयोग करना चाहती है भाजपा?
इसके पीछे सामाजिक कारण भी हैं । पसमंदा मुसलमानों को लेकर जो एक्सपेरिमेंट नीतीश कुमार ने किया था, वही प्रयोग भाजपा “शेख”, “सैय्य”द और “पठान” को लेकर करना चाहती है । बिहार के मुसलमानों में शेख, सैय्यद और पठान उच्च जाति और पढ़े लिखे माने जाते हैं । वहां ‘राड” और “अशराफ” की चर्चा समाज के बीच होती रहती है । गुजरात में बोहरा और अहमदिया, लखनऊ में शिया अगर भाजपा के वोटर हो सकते हैं तो फिर बिहार में शेख, सैय्यद और पठान भाजपा को क्यों नहीं वोट देंगे , खासकर तब जब पार्टी के पास “सैय्यद शाहनवाज हुसैन” जैसा सर्व स्पर्षी चेहरा हो ।
क्या भाजपा के पारंपरिक वोटर और बिहार भाजपा के घाघ नेता शाहनवाज हुसैन को कबूल करेंगे?
बिहार के समाज में उतना सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं है जितना गुजरात, यूपी एमपी या महाराष्ट्र में है । बिहार भाजपा के पारंपरिक वोटर लालू और जंगलराज से त्रस्त होकर पार्टी के साथ जुड़े थे । गिरिराज सिंह तमाम उलूल-जुलून बयानबाज़ी के बावजूद बिहार भाजपा के कैडर वोटर्स का स्वीकार्य चेहरा नहीं बन सकें । तो क्या पार्टी ने शाहनवाज हुसैन के रुप में “उदारवादी चेहरे” को सामने लाने का विचार किया है?
अबतक दिल्ली की राजनीति करते आ रहे शाहनवाज हुसैन की बिहार की राजनीति में एंट्री तो तो गई, लेकिन उनकी राह आसान नहीं । बिहार भाजपा में दो-दो दशक से जमे कई ऐसे नेता हैं जिनकी इच्छा सीएम की कुर्सी पर बैठने की है । कुछ ऐसे भी हैं जो “सीनियरिटी कॉम्पलेक्स ” के शिकार हैं । ये लोग शाहनवाज हुसैन को इतनी आसानी से पैर जमाने देंगे, ऐसा लगता तो नहीं है ।