मिनेसोटा (अमेरिका) के मिनियापोलिस में बुधवार को एक कैथोलिक स्कूल पर हुए हमले में दो बच्चों की मौत हो गई और 17 लोग घायल हो गए। हमलावर की पहचान 23 वर्षीय रॉबिन वेस्टमैन के रूप में हुई, जिसने गोलीबारी के बाद खुद को भी मार डाला। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा गया कि उसके हथियारों पर “Nuke India”, “Mashallah” और “Israel Must Fall” जैसे शब्द लिखे थे।
यह घटना न केवल एक आतंकवादी हमला और एंटी-कैथोलिक नफरत का प्रतीक है, बल्कि अमेरिकी पाखंड को भी उजागर करती है। अमेरिका, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर लाखों निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा, अब भी खुद को “नैतिकता का ठेकेदार” मानता है। आज भी कुछ अमेरिकी मानसिक रूप से वहीं 1970 के दशक में अटके हुए हैं, जब वे दुनिया पर अपनी धौंस जमाते थे। परंतु दुनिया आगे बढ़ चुकी है, और भारत जैसे देश आज वैश्विक मंच पर मजबूत खड़े हैं।
पत्रकार लॉरा लूमर ने कहा कि यह शूटर इस्लामिक प्रोपेगैंडा और “रेड-ग्रीन एलायंस” (वामपंथी-इस्लामी गठबंधन) से प्रभावित था। एफबीआई ने इस हमले को घरेलू आतंकवाद और कैथोलिकों के खिलाफ नफरत अपराध घोषित किया है।
यह सवाल उठता है कि जो देश खुद निर्दोष नागरिकों पर परमाणु हमला कर चुका है, वह आज भी दूसरों को “न्यूक करने” की भाषा बोलने का साहस कैसे करता है? यह सोच अमेरिकी दोहरे मापदंड और साम्राज्यवादी मानसिकता को उजागर करती है।