थम नहीं रहे विस्थापित परिवारों के आंसू, सीएम हेमंत सोरेन को बारम्बार दे रहे धन्यवाद
उज्ज्वल दुनिया/धनबाद । हेमंत सोरेन की सरकार में पहली बार कोयला मंत्रालय ने झारखंड को उसका हक दिया । जो रकम कोयला मंत्रालय की तरफ से राज्य को दिया गया है, वह काफी कम है । लेकिन, संतोष इस बात की है कि शुरुआत तो हुई । लेकिन क्या यही एक हक है जो कोयला मंत्रालय या उसके अंगों से झारखंड या झारखंडियों को मिलना है । ऐसा बिलकुल नहीं है । ऐसा क्यों कहा जा रहा है । इसका एक उदाहरण यहां देना जरुरी है ।
सवाल ये नहीं कि मात्र 250 करोड़ मिले, संतोष है कि शुरुआत तो हुई:विस्थापित
बीसीसीएल जो कोयला मंत्रालय के अधिन आती है । बीसीसीएल का एक कारनामा यहां बताना जरुरी है । बीसीसीएल ने धनबाद जिले के बलियापुर अंचल अन्तर्गत चांदकुईंया पंचायत के गोलमारा और आस पास के गांव की जमीन 1989-90 को भू-अर्जन विभाग तत्कालीन बिहार सरकार के वक्त किया । यहां के किसानों की जमीन बीसीसीएल ने मुकुंदा ओपेन कास्ट प्रोजेक्ट(एमओसीपी) के ओबी डम्प के उद्देशय किया गया था । इस प्लान के तहत आसपास के 13 मौजा के गांव की 1735 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गयी थी । जिसमें गोलामारा गांव की करीब 300 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गयी । अधिग्रहण के दौरान भू-अर्जन विभाग की तरफ से उचित मुआवजा और प्रति दो एकड़ एक नौकरी, नियोजन के तौर पर किसानों को देने का एग्रिमेंट तय हुआ था । लेकिन आज जमीन अधिग्रहण को तीस साल हो गये । लेकिन आजतक यहां के किसानों को न उचित मुआवजा मिला और न ही नियोजन के नाम की नौकरी । 13 मौजा में से सिर्फ 5 मौजा के ग्रामीणों को बीसीसीएल ने नियोजन के नाम पर नौकरी दी ।
बीसीसीएल ने नौकरी और मुआवजा देने का वादा कर धोखा दिया: विस्थापित परिवार
आज हालत ये है कि मुकुंदा ओपेन कास्ट प्रोजेक्ट(एमओसीपी) के नाम से अधिग्रहित जमीन का बीसीसीएल ने अब तक कोई उपयोग नहीं किया है । जिन पांच मौजा की जमीन अधिग्रहण के नाम पर बीसीसीएल ने नियोजन दिया है । वहां ओबी डम्प होना था । लेकिन वहां आज झरिया पुनर्वास नीति (जेआरडीए) के तहत क्वार्टर का निर्माण किया जा रहा है। इस इलाके के 8 मौजा के लोगों को बीसीसीएल ने अंधेरे में रखा और यहां के किसानों को अब तक नियोजन से वंचित रखा । बीसीसीएल ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर इस इलाके की जमीन की खरीद बिक्री पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है । अभी हालात ये हैं कि कई किसानों की सामने भूखों मरने की नौबत आ गयी है । किसान जमीन का मालिक है । लेकिन बुरे वक्त में वह अपनी जमीन का किसी तरह से कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता ।
झारखंड के गरीब किसानों को धोखा देकर बीसीसीएल ने जमीन अधिग्रहण किया
जमीन अधिग्रहण का पुराना या नया दोनों ही कानून के नजरिये से इस मामले को देखे तो यहां के किसानों को बीसीसील ने ठगा है । तीस साल पहले का अधिग्रहण, जिस उद्देश्य के लिये अधिग्रहण हुआ, वह काम न करना और एग्रिमेंट की शर्तों को पूरा नहीं करना । आज यहां के लोगों की आर्थिक हालत भी ऐसी नहीं है कि वो कोर्ट कचहरी का खर्च वहन कर पाये । हक और इंसाफ के लिये हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा पायें।
30 साल से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं ग्रामीण, पहली बार सीएम हेमंत सोरेन का मिला साथ
कतरास के ग्रामीणों ने 30 सालों से अपने हक के लिये हर वह दरवाजा खटखटाया । जहां उन्हें उम्मीद की किरण नजर आयी वहां फरियाद की । लेकिन, आज तक हर जगह से निराशा ही हाथ लगी । इस मुद्दे पर ग्रामीणों से बात करने पर उनकी मांग और बात जायज भी लगती है । स्थानीय ग्रामीण टिंकू सिंह का कहना है कि जमीन की खरीद बिक्री बंद करने से बुरे वक्त में आर्थिक मार से गुजरना पड़ता है । किशोर सिंह कहते हैं कि जिस वक्त जमीन अधिग्रहित की गयी थी । उस वक्त मेरी उम्र नौकरी की थी जो आज नहीं है । 30 साल पहले नौकरी मिल जाती तो तीस साल तक हर महीने तनख्वाह रिटायरमेंट के बाद पीएफ और ग्रेच्युटी । लेकिन आज कुछ नहीं है । अशोक सिंह कहते हैं कि एमओसीपी फेल हो जाने के बाद, किसानों को जमीन वापस मिल जानी चाहिये थे । क्योंकि 30 सालों में तो एग्रिमेंट के तहत जो नियोजन मिलना चाहिये था वो मिला ही नहीं । लेकिन आजतक किसी सरकार ने ये पहल नहीं की । इसके साथ ही कई ऐसे ग्रामीण है जो ये कहते हैं कि उनकी ख्वाहिश है कि मरने से पहले वो ये देख लें कि इस मामले में उन्हें इंसाफ मिल गया है ।
हेमंत सोरेन ने केंद्र से लड़ कर हमारे लिए मुआवजा दिलाया: ग्रामीण
इस इलाके के ग्रामीण, 30 सालों से अपने भविष्य के सुर्योदय का इंतजार कर रहे हैं । इंतजार कर रहे हैं कि कोई तो आयेगा जो उनके हक की बात करेगा । उन्हें बीसीसीएल से इंसाफ दिलायेगा । बीसीसीएल ने प्रशासन के साथ मिलकर जो जमीन की खरीद बिक्री पर रोक लगायी है । उसे दोबारा बहाल करवायेगा । लेकिन, कब तक इसका कोई जवाब नहीं है । ग्रामीणों ने बताया कि पहली बार झारखंड के किसी सीएम ने केंद्र सेकर हमारे लिए मुआवजा दिलाया है । कोयला मंत्रालय से पैसे निकलवाना सचमुच शेर से जबड़े से मांस निकालने के ही बराबर है।