Thursday 21st of November 2024 11:12:26 PM
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क्या बिहार में भाजपा का अल्पसंख्यक कार्ड हैं शाहनवाज हुसैन ?

मंत्री पद की शपथ लेते भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन

पटना में शाहनवाज हुसैन को मंत्रीपद की शपथ लेते देख एक भूमिहार नेता ने टिप्पणी की….एनडीए से एक भी मुसलमान नहीं जीता, लेकिन दो मुसलमान मंत्री बन गए और एक हमलोग हैं, लालू से लड़ने में सबसे आगे, लेकिन आज न नीतीश को हमारी जरुरत है, न भाजपा को…

शाहनवाज हुसैन के मंत्री बनने पर श्रीनगर में बंटी मिठाइयां

तो क्या शाहनवाज हुसैन बिहार बीजेपी का मुस्लिम चेहरा हैं? श्रीनगर से भाजपा के टिकट पर DISTRICT DEVELOPMENT AUTHORITY ( DDA) का चुनाव जीत चुके एजाज हुसैन बताते हैं कि शाहनवाज हुसैन देश के राष्ट्रवादी मुसलमान का चेहरा हैं । एजाज हुसैन कहते हैं कि शाहनवाज हुसैन उन लाखों पढे-लिखे मुसलमान लड़के- लड़कियों का प्रतिबिंब हैं जो मुंबई, पुणे, बैंगलुरु के कॉर्पोरेट ऑफिस में काम करते हैं, जो सूट-टाई या स्कर्ट पहनते हैं, जिनकी गर्लफ्रेंड या ब्वॉयफ्रेंड हिन्दू भी हैं, मुस्लिम भी, सिख भी और ईसाई भी । वे अपने नाम या सरनेम से नहीं, बल्कि अपनी काबिलियत से मुकाम पाना चाहते हैं । जो तथाकथित सेक्यूलर दलों केघिसे-पीटे राजनीतिक जुमलों से ऊब चुके हैं । वे पहचान की राजनीति (identity politics) नहीं चाहते ।

नीतीश कुमार की भी पसंद हैं शाहनवाज हुसैन

राजनीतिक सफर की शुरुआत

शाहनवाज हुसैन ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत भारतीय जनता युवा मोर्चा के सचिव के रूप में किया था। इसके अलावा वे दिल्ली वफ्फ बोर्ड, राष्ट्रीय शक्ति फाउंडेशन जैसे संस्था के सदस्य भी रहे हैं।शाहनवाज हुसैन ने भारतीय जनता पार्टी में अपनी राजनीतिक शुरुआत 1999 में 13 वें लोकसभा चुनाव से की थी। वे सबसे कम उम्र में केंद्रीय मंत्री बने थे। उन्होंने उस समय मानव संसाधन विकास युवा मामले और खेल, खाद्य संस्करण, उद्योग मंत्रालय का प्रभार संभाला। 2001 में उन्हें कोयला मंत्री के रूप में अलग से प्रभाव दिया गया था।

नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में पदोन्नति

इसके बाद 2001 की दूसरी छमाही में नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में पदोन्नति मिली। 2003 में उन्हें कपड़ा मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। हालांकि शाहनवाज 2004 में चुनाव हार गए और इसके बाद 2006 में वे भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और भारी मतों से जीत दर्ज की और 15 वीं लोकसभा के सदस्य बने।

वहीं, शाहनवाज को एक बार फिर से 2014 के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। जिसके कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हें पार्टी द्वारा प्रत्याशी नहीं बनाया गया। लेकिन, इसके बावजूद वे संगठन के कार्य में लगे रहे। जिसका उपहार शाहनवाज को मिला है।

सधे हुए कदमों से बिहार में एंट्री

शाहनवाज ज्यादातर दिल्ली की राजनीति में रहते थे। इनकी पत्नी का नाम रेनू है उनके दो बच्चे हैं। शाहनवाज को भाजपा ने बहुत सधे हुए कदमों से बिहार में एंट्री करवाई है। पहले बिहार विधान परिषद में एमएलसी बनाया गया, इसके बाद बिहार में उद्योग मंत्री बनाया गया।

गौरतलब हो कि नीतीश और शाहनवाज की दोस्ती अटल बिहारी वाजपेई के जमाने से चली आ रही है। बिहार के दोनों नेता को अटल जी भी बहुत पसंद किया करते थे। बिहार के लिए जाने वाले हर एक हर एक फैसले में दोनों की संयुक्त भागीदारी होती थी। ऐसे में नीतीश कुमार को सुशील मोदी के राज्यसभा जाने के बाद एक भरोसेमंद साथी की जरूरत थी, जिसकी कमी शाहनवाज हुसैन पूरा करते हुए नजर आ रहे हैं।

मुस्लिम विरोधी प्रचार पर कड़ा प्रहार

बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य में बीजेपी की चेहराविहीन राजनीति भविष्य की संभावनाओं को धूमिल कर रही थी. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व ने नौजवान, सुलझे और सर्व स्वीकार्य चेहरे को बिहार भेजकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. इनमें से एक बीजेपी की मुस्लिम विरोधी राजनीति के प्रचार पर हमला भी है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं था. इसका एक तरह जहां बीजेपी को नुकसान हुआ, तो आरजेडी को इसका फायदा मिला. ऐसे में अब बीजेपी शाहनवाज को मुस्लिम चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट कर सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने की योजना पर काम कर रही है. इतना ही नहीं आरजेडी के मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगाने की जुगत में है.

बिहार से देंगे बंगाल को संदेश

बंगाल में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. बीजेपी कमर कसकर चुनावी मैदान में अभी से उतर चुकी है. राजनीतिक विसाद पर सियासी मोहरे अभी से सजाए जा रहे हैं. पार्टी के बड़े और खुर्राट नेताओं को चुनाव की कमान सौंपी गई है. मुकाबला ममता बनर्जी से हैं. इसलिए बीजेपी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती. सभी जानते हैं कि बंगाल में मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है. कट्टर छवि की वजह से बीजेपी के लिए मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाना मुश्किल है. ऐसे में शाहनवाज हुसैन की ताजपोशी भले ही बिहार में होगी, लेकिन इसका संदेश बंगाल तक जाएगा. इसका फायदा आगामी विधानसभा चुनाव में मिल सकता है.

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