सुबह-सुबह मिथिलेश धर का एक ट्वीट देखा, जिसमें फ्रीलांस पत्रकार मनदीप पुनिया को गिरफ़्तारी के वक्त का एक वीडियो है, जिसमें मनदीप अपनी गिरफ़्तारी का विरोध कर रहा है और पुलिसवाले उसे ज़बरदस्ती ले जा रहे हैं । फिर राहुल गांधी का ट्वीट देखा जो मनदीप पुनिया के समर्थन में था । हमारे देश में हर रोज पत्रकार गिरफ्तार होते हैं, खबर कवर करने को लेकर मारे भी जाते हैं, धमकी तो लगभग रोज की बात है, लेकिन राहुल गांधी ने शायद ही कभी किसी एक पत्रकार को मौत के घाट उतारने, ट्रैक्टर से कुचलने या जमीन, कोयला, खनन माफिया द्वारा गोलियों से छलनी करने पर ट्वीट किया हो । फिर मनदीप पुनिया में ऐसी कौन सी खास बात है ?
राहुल गांधी के बाद बहन प्रियंका ने भी एक के बाद एक चार ट्वीट दे मारा मनदीप के समर्थन में…
राहुल-प्रियंका गांधी के ट्वीट से नजर हटी ही थी कि पता चला कि रवीश कुमार ने पिछले पांच साल में अपना पहला ट्वीट किया है। बिल्कुल अपने ऑफीशियल ट्वीटर हैंडल से, ब्लू टिक वाला…..हमें लगा कि हो न हो मनदीप पुनिया की लेखनी में दम होगा, या वो ग्राउंड रिपोर्टिंग बेहतरीन करता होगा, या फिर एक्सक्लूसिव खबर निकालने में उसकी कोई सानी नहीं होगी….कम से कम सच के साथ साहस के साथ खड़ा रहता होगा…
गूगल ,फेसबुक और ट्वीटर पर दिन भर की मगजमारी के बाद सिर्फ इतना पता चला कि मनदीप पुनिया को न पुलिस ने मारा-पीटा है, न ही लोकतंत्र पर कोई खतरा है । हां, अदालत ने उनके खिलाफ लगे आरोपों की गंभीरता को देखते हुए उनको 14 दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया है । मनदीप पर फेक न्यूज फैलाने, दिल्ली पुलिस के खिलाफ लोगों को भड़काने और सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप है ।
कौन है मनदीप पुनिया ?
मनदीप ने साल 2017-18 में IIMC (Indian Institute of mass communication) से पढ़ाई की । साल 2018 में मनदीप IIMC प्रशासन के खिलाफ ‘हॉस्टल’ की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठा था । तीन दिन तक चली उस भूख हड़ताल के बाद प्रशासन को पीछे हटना पड़ा ।
IIMC छोड़ने के बाद उसने कुछ जगह छोटी-मोटी नौकरी की। वह मीडिया से निराश था ही कि इसी बीच उसके पिता दुनिया छोड़कर चले गए । मीडिया की हालत देखकर मनदीप अपने गांव लौट गया और वहां जाकर खेती करने लगा। लेकिन खेती सिर्फ इसलिए की ताकि पेट भरता रहे और और जहां-तहां आंदोलनों की रिपोर्ट करने के लिए आने-जाने का किराया आ जाया करे।
मनदीप के राजनीतिक रुझान की वजह से उसे मेनस्ट्रीम मीडिया में नौकरी नहीं मिली। हां, CARAVAN, द वायर, फ्रंट पोस्ट और कुछ दलित पत्रिकाओं में उसके लिखे आर्टिकल जरुर छपे । लेकिन बीते दो महीनों से वो केवल और केवल किसानों के मुद्दों पर लिख रहा है। वह आमतौर पर किसान आंदोलनों के टैंटों में ही सोता, वहीं खाता है।