उज्ज्वल दुनिया/रांची । झारखंड की नौ कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नीलामी की छूट दे दी है। निर्देश दिया कि ई नीलामी उसके अंतिम आदेशों के दायरे में रहेगी। नीलामी के बाद औपबंधिक खनन की अनुमति सरकार को देनी होगी। केंद्र सरकार को बोली लगाने वालों को इसकी सूचना देने का भी निर्देश शीर्ष अदालत ने दिया।
झारखंड सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कोर्ट ने यह निर्देश दिया। झारखंड सरकार ने राज्य की नौ कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की अगली सुनवाई दीपावली के बाद होगी।
केंद्र सरकार ने 41 कोयला खदानों की नीलामी शुरू की थी, जिसमें से नौ खदान झारखंड में हैं। इन खदानों की नीलामी रोकने के लिए झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है फरवरी में कोयला खदानों की नीलामी को लेकर बैठक हुई थी। इसमें जो बिंदु तय हुए थे उसका पालन किए बगैर खदानों की नीलानी की जा रही है। नीलामी में कोविड-19 की वजह से बदली हुई परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार उसकी सीमा के भीतर स्थित इन खदानों और खनिज संपदा की मालिक है। याचिका में 5 और 23 फरवरी की बैठकों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि केंद्र ने राज्य सरकार की ओर से दर्ज कराई गई आपत्तियों पर विचार नहीं किया। संविधान की पांचवी अनुसूची का जिक्र करते हुए कहा गया है कि झारखंड में नौ कोयला खदानों में से छह को नीलामी के लिए रखा गया है। ये सभी पांचवी अनुसूची के इलाके में हैं। झारखंड में 29.4 फीसदी वन क्षेत्र है और नीलामी के लिए रखी गई कोयला खदानें वन भूमि पर हैं। खनन से वनों को नुकसान होगा और पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ सकता है।
एक भी पेड़ नहीं कटेंगे
केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि खनन के दौरान इलाके में क्षेत्र में एक भी वृक्ष की कटाई नहीं होगी। कोर्ट ने चार नवंबर को यह आदेश देने का संकेत दिया था कि झारखंड में व्यावसायिक मकसद से पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के 50 किमी के दायरे में प्रस्तावित कोयला खदानों के आवंटन के लिये ई-नीलामी नही की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि वह सिर्फ यह सुनिश्चित करना चाहती है कि ‘जंगलों को नष्ट नहीं किया जाये। न्यायालय ने कहा कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रहा है जो यह पता लगायेगी कि क्या झारखंड में प्रस्तावित खनन स्थल के पास का इलाका इको सेंसेटिव जोन है या नहीं।अटार्नी जनरल अदालत की इस टिप्पणी का विरोध करते हुए कहा था कि इस तरह के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील जोन से खदान स्थल 20 से 70 किमी की दूरी पर हैं और अगर यही पैमाना लागू किया गया तो गोवा जैसे राज्यों में खनन असंभव हो जायेगा।