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विजय शंकर सिंह-
zee हिंदुस्तान ने देवबंद को लेकर एक फर्जी खबर चलाई है कि वहां नमाज के बाद हंगामा हुआ है।
यह खबर फर्जी है।
SSP ने इसका खंडन किया है। यकीन कीजिए देश का माहौल सबसे अधिक यही मीडिया खराब कर रहा है।
आखिर ये ऐसा कर क्यों रहे हैं? इन्हे क्या लाभ हो रहा है?
ZeeNews की फ़ेक न्यूज़ वर्सेस UP सरकार की पुलिस। मानेंगे नहीं यह दंगाई चैनल इस देश को डुबाए बिना।
संजय कुमार सिंह-
ट्वीटर या सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें किसलिए?
Zee Hindustan पर जहरीला मौलाना #LIVE
जी हिन्दुस्तान की एक खबर है, जुमे की नमाज के बाद देवबंद में हंगामा!@akashtomarips ने ट्वीट किया है, Stop spreading fake news. Situation is totally normal! No incident at all in Deoband.
यह ज़ी हिन्दुस्तान की खबर है। एसपी ने उसका खंडन कर दिया। बात खत्म हो गई। मैं इस खबर और खंडन के बहाने खबर देने और देने वाले पत्रकारों, चैनलों और मीडिया संस्थानों की बात करना चाहता हूं। आखिर ज़ी हिन्दुस्तान को ट्वीटर पर खबर देने की क्या जल्दी है? और क्यों है। अगर जल्दी है तो अपने चैनल पर सबसे पहले खबर देने की होनी चाहिए। ट्वीटर पर क्यों?
कायदे से कोई भी खबर, खबर देने वाला पेशेवर न भी हो तो तभी देनी चाहिए जब उसकी पुष्टि हो जाए, जन हित में हो या जिसे दी जा रही है उसके काम की हो। ट्वीटर पर मैं या कोई भी खबर जानने के लिए नहीं बैठा होता है। फिर भी लोग खबर देते हैं। यह देने वाले और देखने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसे गंभीरता दे या न दे। पर अगर समाचार चैनल वाले, अखबार वाले, संपादक, पत्रकार सब ट्वीटर पर खबर देने लगेंगे तो ट्वीटर का या सोशल मीडिया का जो असली मकसद है वह खत्म हो जाएगा। यह अलग बात है कि कुछ राजनीतिक स्वार्थ वाले लोग यही चाहते हैं। पर मुद्दा वह नहीं है।
मेरा मानना है कि अव्वल तो चैनलों को सोशल मीडिया से बाहर कर दिया जाना चाहिए या हमलोगों को उन्हें भाव देना बंद कर देना चाहिए। ऐसी खबरें देकर ये चैनल वाले अनावश्यक बोझ बढ़ा रहे हैं। अव्वल तो ज्यादतर चैनल जो कर रहे हैं वही कम कूड़ा नहीं है उसपर सोशल मीडिया को भी फंसा रखा है और इस नाते सरकार, प्रशासन तथा राजनीतिक दलों को भी। अभी कुछ साल पहले तक देश रात नौ बजे की खबरों से चल रहा था और अब हमने कोई तीर नहीं मार लिया है कि हर क्षण की खबर उसी क्षण चाहिए। और अगर चाहिए या देनी ही है तो बाकायदा दी और ली जाए – यह नालायकी क्यों?
सरकार जी अपने स्वार्थ में इसपर नहीं बोलेंगे पर हमें देखना और समझना चाहिए। जल्दबाजी के नाम पर इस तरह की खबरें आखिर किसलिए की जाती हैं और क्यों की जानी चाहिए। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे देवबंद में रहने वालों के साथ-साथ दुनिया भर में फैले वो सभी लोग परेशान होंगे जिनका कोई परिचित, रिश्तेदार, करीबी देवबंद में रहता है। खबर का क्या आधार है, क्या हंगामा है कुछ पता नहीं है पर खबर है। आखिर किसलिए? पुलिस प्रशासन को परेशान करने के लिए, डंडा खाना के लिए या किसी को पिटवाने के लिए?
इनमें से किसी का कोई काम नहीं नहीं है, कोई मतलब नहीं है और इसे तुरंत बंद होना चाहिए। भले पुलिसिया अंदाज में बंद किया जाए। ऐसे पत्रकारों या संस्थानों को मीडिया जैसी अजादी की जरूरत भी नहीं है। आखिर किसका भला या किसकी सेवा करते हैं ये लोग ऐसी खबर देकर जिन्हें एक जवाबी ट्वीट पर सांप सूंघ जाता है। हालांकि अभी वहां Zee Hindustan पर जहरीला मौलाना #LIVE चल रहा है। कायदे से एक लाइन की इस खबर के साथ एसपी का पक्ष भी होना चाहिए था – एसपी के पक्ष का इंतजार किया जाना चाहिए और लगे कि एसपी बचना चाह रहे हैं तो यह लिखा जाना चाहिए कि एसपी से संपर्क या बयान लेने की कोशिशों में सफलता नहीं मिली। तब ऐसे डांट नहीं पड़ेगी और उसका मतलब भी नहीं होगा।
अभी आप ब्रेकिंग चलाओ, डांट पड़ी और आप बगलें झांकने को मजबूर हो गए। पुलिस ने ठोक दिया तो पत्रकारिता-पत्रकारिता रोने लगे। या पत्रकारिता के नाम पर किसी जहरीला मौलाना को लाइव दिखाने लगे। यह सब बचपना है। नासमझी है। हाथ में माइक होने का दुरुपयोग है। आखिर जहरीला मौलाना लाइव होकर क्या जनहित करेगा। आप उसकी बात रिकार्ड करके पुलिस को दे दीजिए। उसकी गिरफ्तारी चाहते हैं तो इतना काफी है। नहीं तो जहरीले नाग को माइक दीजिए, खतरनाक शेर को माइक दे दीजिए। मौलाना को क्यों? तनाव के इस समय में संचार क्रांति का लाभ उठाने की क्या जल्दी। अगर मकसद दंगा कराना नहीं है, उससे कमा नहीं रहे हैं तो यह शर्मिन्दगी क्यों उठाना? कब समझेंगे मालिकान और प्रशिक्षु संपादक।
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